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भाई दूज 2025: यमराज और यमुना की अमर कथा, जो बनाती है भाई-बहन के रिश्ते को खास

नई दिल्ली: दीवाली के पांच दिवसीय उत्सव का समापन भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक, भाई दूज के साथ होता है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला यह त्योहार, भाई-बहन के अटूट बंधन, स्नेह और एक-दूसरे की रक्षा के वचन का उत्सव है। रक्षाबंधन की तरह ही यह पर्व भी भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित है, लेकिन इसकी परंपरा और कथा इसे एक विशेष पहचान देती है। आइए जानते हैं इस खास त्योहार से जुड़ी पौराणिक कथा और इसके महत्व के बारे में।

जब यमराज पहुंचे अपनी बहन यमुना के घर

भाई दूज की सबसे प्रचलित कथा मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना से जुड़ी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव की दो संतानें थीं- पुत्र यमराज और पुत्री यमुना। काम में व्यस्त रहने के कारण यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने नहीं जा पाते थे। यमुना अपने भाई को बार-बार अपने घर भोजन पर आमंत्रित करतीं, लेकिन हर बार यमराज का आना टल जाता।

एक दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने फिर अपने भाई को निमंत्रण दिया और उनसे वचन भी ले लिया कि वह अवश्य आएंगे। बहन के वचन से बंधे यमराज मृत्युलोक के अपने सारे काम छोड़कर यमुना के घर पहुंचे। अपने भाई को दरवाजे पर देख यमुना की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने हर्षोल्लास के साथ अपने भाई का स्वागत किया, उनके मस्तक पर तिलक लगाया, आरती उतारी और उन्हें प्रेमपूर्वक अपने हाथों से बने स्वादिष्ट व्यंजन खिलाए।

बहन के इस स्नेह और सत्कार से यमराज इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने यमुना से एक वरदान मांगने को कहा। यमुना ने वरदान में मांगा, “हे भैया! आप हर साल इसी दिन मेरे घर भोजन करने आया करें। साथ ही, जो भी बहन इस दिन अपने भाई का तिलक कर उसे भोजन कराए, उसे कभी आपका (मृत्यु का) भय न हो।” यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर अपनी बहन को यह अनमोल वरदान दिया। माना जाता है कि तभी से भाई दूज या ‘यम द्वितीया’ का यह पावन पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।

भगवान कृष्ण और सुभद्रा से भी जुड़ी है परंपरा

एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण नरकासुर नामक राक्षस का वध करके द्वारका लौटे, तो उनकी बहन सुभद्रा ने दीये जलाकर, फूल और मिठाइयों से उनका स्वागत किया था। सुभद्रा ने भगवान कृष्ण के माथे पर स्नेह का तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु की कामना की। इस कथा को भी भाई दूज की शुरुआत का एक कारण माना जाता है।

कैसे मनाया जाता है यह पर्व?

इस दिन बहनें सुबह स्नान कर अपने ईष्ट देव और यमराज की पूजा करती हैं। वे अपने भाई के लिए विशेष भोजन तैयार करती हैं और शुभ मुहूर्त में चावल के आटे से चौक बनाकर भाई को उस पर बैठाती हैं। बहनें अपने भाई के मस्तक पर रोली और अक्षत का तिलक लगाती हैं, उनकी आरती उतारती हैं और मिठाई खिलाकर उनके लंबे, स्वस्थ और समृद्ध जीवन की कामना करती हैं। वहीं, भाई अपनी बहनों को स्नेह के प्रतीक के रूप में उपहार देते हैं और सदा उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं।

यह त्योहार सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि भाई-बहन के रिश्ते की गहराई, आपसी सम्मान और सुरक्षा की भावना को भी दर्शाता है। यह पर्व पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने और व्यस्त जीवन के बावजूद रिश्तों की डोर को स्नेह से बांधे रखने का एक खूबसूरत अवसर है।

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