देहरादून :संयुक्त राष्ट्र की एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 तक दुनिया की 14 फ़ीसदी आबादी को पानी की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। एक अध्ययन के अनुसार, साल 2025 तक दुनिया के 48 देशों के 2.8 अरब लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पाएगा। यह आंकड़ा साल 2050 तक 7 अरब तक पहुंच सकता है।
भारत, पाकिस्तान और चीन में पानी की समस्या और भी बढ़ सकती है। कई नदियों में बहाव की स्थिति भी कमज़ोर हो सकती है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) की एक अध्ययन के अनुसार, साल 2050 तक अमेरिका के लगभग सभी तट बढ़ते समुद्री जलस्तर की वजह से डूब सकते हैं।
फ़रवरी 2021 में McKinsey India ने एक रिपोर्ट में यह भी बताया था कि साल 2050 तक मुंबई में फ़्लैश फ़्लड की तीव्रता में 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है और समुद्र का स्तर आधा मीटर बढ़ सकता है। इससे मुंबई के तटरेखा से एक किलोमीटर के दायरे में रहने वाले करीब दो-तीन मिलियन लोगों को नुकसान हो सकता है।
विश्व के ग्लेशियरों की तेजी से पिघलने की घटना ने वैज्ञानिक समुदाय और पर्यावरणविदों को गहरी चिंता में डाल दिया है। यह एक ऐसी समस्या है जिसके परिणाम सीधे तौर पर हमारे ग्रह के भविष्य और मानवता की सुरक्षा से जुड़े हुए हैं। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के कारण विश्व के लगभग एक-तिहाई ग्लेशियर 2050 तक समाप्त हो सकते हैं। इसका मुख्य कारण है वायुमंडल में बढ़ता हुआ CO2 उत्सर्जन, जिससे तापमान में वृद्धि हो रही है।
ग्लेशियरों का पिघलना न केवल जल स्तर में वृद्धि का कारण बनता है, बल्कि यह जल संकट और प्राकृतिक आपदाओं के खतरे को भी बढ़ाता है। इसके अलावा, ग्लेशियरों का पिघलना जैव विविधता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे कई पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए खतरा उत्पन्न होता है। विश्व की लगभग आधी मानव जनसंख्या सीधे या परोक्ष रूप से ग्लेशियरों पर निर्भर करती है, चाहे वह घरेलू उपयोग के लिए हो, कृषि के लिए हो या ऊर्जा के लिए हो।
इस समस्या का समाधान केवल एक ही है: CO2 उत्सर्जन में तेजी से कमी लाना। यदि वैश्विक तापमान में वृद्धि 1.5°C से अधिक नहीं होती है, तो ग्लेशियरों के शेष दो-तिहाई हिस्से को बचाया जा सकता है। यह एक आवश्यक कदम है जिसे उठाने की जरूरत है ताकि हम अपने ग्रह को और उस पर निर्भर सभी जीवन रूपों को सुरक्षित रख सकें।
2050 तक समाप्त होने की संभावना वाले कुछ प्रमुख ग्लेशियरों की सूची निम्नलिखित है:
ये ग्लेशियर विश्व धरोहर स्थलों में स्थित हैं और इनके पिघलने का मुख्य कारण CO2 उत्सर्जन से बढ़ता हुआ वैश्विक तापमान है। इन ग्लेशियरों का संरक्षण और उनके पिघलने की दर को कम करने के लिए CO2 उत्सर्जन में तेजी से कमी लाना आवश्यक है।
ग्लेशियरों के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं:
पिडमॉन्ट ग्लेशियर एक प्रकार का ग्लेशियर है जो तब बनता है जब एक या अधिक पर्वतीय ग्लेशियर ढलानों से नीचे आकर समतल भूमि पर मिलते हैं। इस प्रक्रिया में, ग्लेशियर एक विस्तृत और फैले हुए द्रव्यमान का निर्माण करते हैं जो अपने आकार और विस्तार में बड़े होते हैं। ये ग्लेशियर अक्सर वहां पाए जाते हैं जहां ग्लेशियरों की गति धीमी होती है और बर्फ का जमाव बढ़ता है, जिससे वे चौड़े और फ्लैट आकार के बन जाते हैं। पिडमॉन्ट ग्लेशियर अपने विशिष्ट आकार और बनावट के कारण जलवायु विज्ञान और भूगोल के अध्ययन में महत्वपूर्ण होते हैं।
पिडमॉन्ट ग्लेशियर अपने विशिष्ट आकार और बनावट के कारण जलवायु विज्ञान और भूगोल के अध्ययन में महत्वपूर्ण होते हैं। ये ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते हैं और उनके पिघलने से जल स्तर में वृद्धि और जलवायु पैटर्न में परिवर्तन हो सकता है। इसलिए, इनका अध्ययन और संरक्षण विश्व के जलवायु संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
ये ग्लेशियर विभिन्न भौगोलिक और जलवायु स्थितियों में बनते हैं और पृथ्वी की सतह पर उनका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। ग्लेशियरों का अध्ययन जलवायु परिवर्तन की समझ में भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे वैश्विक तापमान और जलवायु पैटर्न में परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते हैं।
मुंबई को बाढ़ का खतरा, साल 2050 तक समुद्र का स्तर बढ़ने की चेतावनी
नासा की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2050 तक हर साल समुद्र के स्तर में 0.26 इंच की बढ़ोतरी हो सकती है। यह बढ़ोतरी पिछले साल (2021-2022) की तुलना में दोगुनी है, जब औसत वैश्विक समुद्र का स्तर 0.11 इंच बढ़ा था।
वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (WMO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस तेजी से बढ़ रहे समुद्र स्तर के कारण, साल 2050 तक मुंबई शहर पानी में डूब सकता है।
मैकिंज़ी इंडिया की एक अन्य रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि साल 2050 तक मुंबई में फ़्लैश फ़्लड की तीव्रता 25 प्रतिशत बढ़ सकती है और समुद्र का स्तर आधा मीटर बढ़ सकता है। इससे शहर के तटरेखा से एक किलोमीटर के दायरे में रहने वाले करीब दो-तीन मिलियन लोग प्रभावित हो सकते हैं।
इन सभी रिपोर्टों को मिलाकर यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से मुंबई जैसे तटीय शहरों पर बड़ा खतरा हो सकता है। इसलिए, इस समस्या को हल करने के लिए तत्परता और संवेदनशीलता की आवश्यकता है।
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