हरिद्वार: गीता के पाठ से भी पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है. गीता में लिखा है क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि, व्यग्र होती है जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और जब तर्क मरता है तो मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है और उसका पतन शुरू हो जाता है और इस आधार पर बहुत सारी ज्ञान और बुद्धि खोलने वाली बाते गीता में लिखी गई है.
गीत शब्द का अर्थ है गीत और भगवद शब्द का अर्थ भगवान यानी कि भगवद गीता को भगवान का गीत कहा गया है. पितृपक्ष में श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से पूर्वजों का उद्धार होता है. पितृ दोष से मुक्ति और पितृ शांति मिलती है. शास्त्रों में इसे पितरों के कल्याण का सबसे सरल उपाय बताया गया है. जन्म के साथ ही मनुष्य पर देव, गुरु पितृ ऋण होते हैं. गुरु के बताए रास्ते का पालन करके गुरु ऋण, देवताओं की पूजा करके देव ऋण तथा पूर्वजों का तर्पण श्राद्ध, पिंडदान करके पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है.
भागवत गीता के पाठ से भी पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है। गीता का वो ज्ञान जो भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया था। इस गीता का 7वां अध्याय पितृ मुक्ति और मोक्ष से जुड़ा है। श्राद्ध पक्ष में गीता के सातवें अध्याय का पाठ किया जाता है। इस अध्याय का नाम है ज्ञानविज्ञान योग। इस अध्याय का पाठ श्राद्ध में जितना हो सके, उतना करने का प्रयास करें। इससे पितरों को तृप्ति मिलेगी और पितृ दोष से मुक्ति मिलेगी।
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