शिरडी: शिरडी के साईं बाबा ने 15 अक्टूबर 1918 को दशहरे (विजयादशमी) के दिन महासमाधि ली थी। हर साल दशहरे के दिन साईं बाबा की पुण्यतिथि मनाई जाती है। भक्तों के मन में यह सवाल अक्सर उठता है कि आखिर साईं बाबा ने अपनी समाधि के लिए दशहरे का दिन ही क्यों चुना। इसके पीछे कुछ चमत्कारी और आध्यात्मिक कारण बताए जाते हैं जो साईं बाबा की अपने भक्तों के प्रति असीम कृपा और उनके दिव्य स्वरूप को दर्शाते हैं।
भक्त तात्या को दिया जीवनदान
साईं बाबा के दशहरे के दिन समाधि लेने का सबसे प्रमुख कारण उनके एक परम भक्त तात्या को दिया गया जीवनदान माना जाता है। कई साईं चरित से जुड़ी कथाओं के अनुसार, बाबा ने पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि विजयादशमी के दिन तात्या की मृत्यु होगी। तात्या, साईं बाबा की एक अन्य प्रिय भक्त बैजाबाई के पुत्र थे और बाबा उन्हें अपने भांजे की तरह मानते थे।जैसे-जैसे दशहरे का दिन नजदीक आया, तात्या की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई और उनका बचना लगभग नामुमकिन लग रहा था। लेकिन अपने भक्त के प्राण बचाने के लिए साईं बाबा ने स्वयं उसकी जगह अपने नश्वर शरीर का त्याग करने का निर्णय लिया।इस तरह, 15 अक्टूबर 1918 को तात्या की जगह साईं बाबा ब्रह्मलीन हो गए और तात्या को जीवनदान मिला।
दिव्य संकेत और पूर्व सूचनाएं
साईं बाबा ने अपने महाप्रयाण के संकेत पहले ही दे दिए थे।
दशहरे का आध्यात्मिक महत्व
दशहरे का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। माना जाता है कि साईं बाबा ने इस दिन को चुनकर यह संदेश दिया कि वे अपने भौतिक शरीर को त्यागकर अपने भक्तों के दुखों और कष्टों को हरने के लिए सर्वव्यापी हो रहे हैं। उनके अंतिम शब्द थे, “मैं हमेशा अपने भक्तों के साथ रहूंगा,” जो आज भी उनके अनुयायियों के लिए एक स्थायी आश्वासन हैं।कुछ मान्यताओं के अनुसार, साईं बाबा का यह भी कहना था कि धरती से विदा होने के लिए दशहरा का दिन सबसे उत्तम है।
आज शिरडी में उसी स्थान पर साईं बाबा का भव्य समाधि मंदिर है, जहां दुनिया भर से लाखों भक्त उनके दर्शन और आशीर्वाद के लिए आते हैं।दशहरे के दिन यहां विशेष आयोजन होते हैं और बाबा के इस महान बलिदान को याद किया जाता है।
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