UTTARAKHAND

सीएम धामी की रणनीति का अगला अध्याय होगा ‘मिशन आपातकाल’, इस आदेश को पहनाया जा रहा कानूनी कवच

देहरादून: उत्तराखंड में ‘मिशन कालनेमि’ के बाद अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार की रणनीति का अगला केंद्र ‘मिशन आपातकाल’ बनने जा रहा है। इसके तहत, धामी सरकार विधानसभा में एक विधेयक लाने की तैयारी में है जो 1975 में लगे आपातकाल के दौरान जेल जाने वाले ‘लोकतंत्र सेनानियों’ को पेंशन और अन्य सुविधाएं देने वाले शासनादेश को कानूनी रूप देगा।[1] इस कदम से राज्य की सियासत गरमाने की संभावना है।

क्या है ‘मिशन आपातकाल’?

धामी सरकार “उत्तराखंड लोकतंत्र सेनानी सम्मान विधेयक” नामक एक कानून बनाने जा रही है। इस विधेयक का मसौदा गृह विभाग के अधिकारी तैयार कर रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में जारी उस शासनादेश को कानूनी कवच पहनाना है, जिसके तहत लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन दी जा रही है।

कानून में क्या होगा खास?

  • किसे मिलेगा लाभ: इस कानून का लाभ उन लोगों को मिलेगा जो 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक आपातकाल के दौरान कम से कम एक महीने तक जेल में रहे थे।
  • पेंशन: वर्तमान में, त्रिवेंद्र सरकार के शासनादेश के माध्यम से 82 लोकतंत्र सेनानियों को ₹20,000 प्रति माह की पेंशन दी जा रही है। धामी सरकार ने हाल ही में इस सम्मान निधि को बढ़ाने का ऐलान भी किया है।
  • अतिरिक्त सुविधाएं: विधेयक में पेंशन के अलावा अन्य सुविधाएं देने पर भी विचार किया जा रहा है। अगर वित्त विभाग की मंजूरी मिलती है तो इन सेनानियों को मुफ्त परिवहन और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं भी दी जा सकती हैं।

राजनीतिक मायने और विपक्ष का हमला

भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर आपातकाल को कांग्रेस की तानाशाही का प्रतीक बताकर उसे घेरती रही है। धामी सरकार का यह कदम इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य पुराने भाजपा या जनसंघ के कार्यकर्ताओं को सम्मान देना है।भाजपा विधायक खजान दास ने सरकार के इस कदम को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इससे उन लोगों को कानूनी रूप से उनका हक मिलेगा जो तत्कालीन सरकार के उत्पीड़न का शिकार हुए थे।

वहीं, कांग्रेस ने इस कदम को राजनीति से प्रेरित बताया है। कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि सरकार अहम मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ऐसे कदम उठा रही है। उन्होंने तर्क दिया कि आपातकाल के बाद जनता ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाकर इस मुद्दे को समाप्त कर दिया था।

यह विधेयक आगामी विधानसभा सत्र में पेश किया जा सकता है और इसके पारित होने के बाद उत्तराखंड में लोकतंत्र सेनानियों को मिलने वाली सुविधाएं एक स्थायी कानूनी अधिकार बन जाएंगी।

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