हिमाचल:भरमौर का यम मंदिर हिमाचल के चम्बा जिले में स्थित यमराज का यह मंदिर एक भवन के समान है। यमराज को ‘मार्कण्डेय पुराण’ के अनुसार दक्षिण दिशा के दिक्पाल और मृत्यु का देवता कहा गया है। यमराज का पुराणों में विचित्र विवरण मिलता है। यमराज के मुंशी ‘चित्रगुप्त’ हैं जिनके माध्यम से वे सभी प्राणियों के कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त की बही ‘अग्रसन्धानी’ में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है।
यमराज के खास मंदिरों में से एक है भरमौर का यम मंदिर। यह मंदिर देखने में एक घर की तरह दिखाई देता है जहां एक खाली कक्ष है जिमें भगवान यमराज अपने मुंशी चित्रगुप्त के साथ विराजमान हैं। इस कक्ष को चित्रगुप्त का कक्ष कहा जाता है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं जो जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता अनुसार जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है, तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मो का पूरा ब्योरा सुनाते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को यमराज की कचहरी कहा जाता हैं। यमराज की अदालत में कार्रवाई होती है। यहां यमराज के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के बाद, व्यक्ति की आत्मा को स्वर्ग या नर्क भेजने का फैसला होता है। यह प्रक्रिया आत्मा के कर्मों के आधार पर होती है।
यह वाकई अद्वितीय है। यमराज के इस मंदिर की विशेषता उनके चार द्वार हैं, जो सोने, चांदी, तांबा और लोहे से निर्मित हैं। यह मान्यता है कि यमराज के फैसले के बाद, यमदूत आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नर्क ले जाते हैं। गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वारों का वर्णन किया गया है। यह जानकारी निश्चित रूप से इस मंदिर की अद्वितीयता और महत्व को बढ़ाती है।
“चौरासी मंदिर: हिमाचल के भरमौर का ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल”
चौरासी मंदिर हिमाचल प्रदेश के चम्बा ज़िले के भरमौर शहर के बीच स्थित एक हिन्दू धार्मिक स्थल है। यह लगभग 1400 वर्ष पुराना है। इसमें एक केन्द्र की परिमिति पर शिवलिंग पर आधारित चौरासी मंदिर बने हुए हैं जिनके कारण इसका नाम पड़ा। इनके बीच पारम्परिक उत्तर भारतीय शिखर वास्तुशैली में बना मणिमहेश मंदिर है। चौरासी मंदिर भरमौर का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केन्द्र है.
माना जाता है कि भरमौर के राजा सहिल वर्मन ने मंदिर का निर्माण 84 सिद्धकों के नाम पर करवाया था। यह योगीजन कुरुक्षेत्र से आए थे और मणिमहेश झील व मणिमहेश कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए जा रहे थे। रास्ते में वे भरमौर में रुके और वहाँ साधना करी। उन्होंने निःसंतान राजा को दस पुत्रों और एक पुत्रि का वरदान दिया। आस्था है कि मणिमहेश झील का तीर्थ इस मंदिर के दर्शन करे बिना पूरा नहीं होता। यह मंदिर शिव और शक्ति को समर्पित है
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