ओडिशा: पुरी के राज भगवान जगन्नाथ को छप्पन प्रकार के भोग लगाते थे। मंदिर से कुछ दूर एक स्त्री रहती थी , वह भगवान जगन्नाथ को ही अपना पुत्र मानती थी। वह मंदिर में जाकर भगवान को रोज भोग खाते हुए देखती थी।
एक दिन उस स्त्री के मन में यह विचार आया कि इतना सारा भोजन करने के बाद मेरे बेटे के पेट में दर्द हो जाएगा। इसलिए वह तुरंत भगवान जगन्नाथ के लिए नीम का चूर्ण बनाकर उन्हें खिलाने के लिए आई, परंतु मंदिर द्वार पर खड़े सैनिकों ने उसके हाथ से नीम का चूर्ण फेंक दिया और उसे वहां से भगा दिया।
स्त्री को रोते देख भगवान जगन्नाथ ने राजा को सपने में दर्शन दिए और उन्हें आदेश दिया कि तुम्हारे सैनिक मेरी माता को मुझे दवा नहीं खिलाने दे रहे। सपने में भगवान जगन्नाथ की बाते सुन राजा उस स्त्री के घर गए और उससे माफी मांगी। इसके बाद स्त्री ने दोबारा नीम का चूर्ण तैयार कर भगवान जगन्नाथ को खिलाया। कहते हैं तभी से भगवान जगन्नाथ को छप्पन भोग लगाने के बाद नीम का चूर्ण का भोग लगया जाता है।
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